शहर की हदो से ज़रा दूर जब थोड़ा सैर सपाटा किया, तो एक और जीने की आदत हात लगी; जो आपके और हमारे जिंदगी से बहोत अलग थी |
वही पे कही, दादी माँ से मुलाक़ात हुई, कई मिनटो तक बात हुई.. और हां ये तस्वीर याद रह गयी....!!
चन्द झुर्रियाँ थीं
सूखे पत्ते, थमती बरसात की कहानी
और चेहरे पर ये निशानी
कुछ मजबूरियाँ थी
चन्द झुर्रियाँ थीं
बुझते दीपकों की है जिंदगानी
और कोशिशे करती रहे लौ दीवानी
पर कठिनाइयाँ थी
चन्द झुर्रियाँ थीं
आधा बूँद गगरी, या ना बरसे है पानी
कोई सपना हो हकीकत, या दुनिया फ़ानी
दो कहानियाँ थी
चन्द झुर्रियाँ थीं
तरसे खुशियाँ, लाख मुश्किलें हो आसमानी
मुस्कान चेहरे पर, आँखों में उम्मीद रूहानी
जैसे बिजलियाँ थी
चन्द झुर्रियाँ थीं
Wah Wah lekhak..
ReplyDeleteThank you !! :)
Deletevery nice bhai, real content.
ReplyDeleteMuch thanks Shashank bhai !! :)
DeleteWow....
ReplyDeleteThanks Aftab bhai !!
DeleteNice one bhai
ReplyDeletethank you Tausif sir !! :)
DeleteMashallah!!!!! Bahot khoob likha hai.!!!!
ReplyDeleteThank you Abhishek Sheth !! :)
Deletenice...Keep Rocking..
ReplyDeleteThank you !! :)
DeleteSuperb
ReplyDeleteThank you Swapnil !! :)
DeleteTeuth of life,wonderful write up dear Amey
ReplyDelete