Saturday 18 May 2019

चन्द झुर्रियाँ थीं


शहर की हदो से ज़रा दूर जब थोड़ा सैर सपाटा किया, तो एक और जीने की आदत हात लगी; जो आपके और हमारे जिंदगी से बहोत अलग थी |
वही पे कही, दादी माँ से मुलाक़ात हुई, कई मिनटो तक बात हुई.. और हां ये तस्वीर याद रह गयी....!!


चन्द झुर्रियाँ थीं 


सूखे पत्ते, थमती बरसात की कहानी
और चेहरे पर ये निशानी
कुछ मजबूरियाँ थी
चन्द झुर्रियाँ थीं

बुझते दीपकों की है जिंदगानी
और कोशिशे करती रहे लौ दीवानी
पर कठिनाइयाँ थी
चन्द झुर्रियाँ थीं

आधा बूँद गगरी, या ना बरसे है पानी
कोई सपना हो हकीकत, या दुनिया फ़ानी
दो कहानियाँ थी
चन्द झुर्रियाँ थीं

तरसे खुशियाँ, लाख मुश्किलें हो आसमानी
मुस्कान चेहरे पर, आँखों में उम्मीद रूहानी
जैसे  बिजलियाँ थी
चन्द झुर्रियाँ थीं

Wednesday 1 May 2019

थोडे त्रिकोण, काही काटकोन



थोडे त्रिकोण, काही काटकोन 

चवीनुसार मीठ अन् चिमूटभर साखर,
आणि जरा वेलचीचा गरजेनुसार वापर.
मनामध्ये असल्यास मनासारखे जर,
लज्जतदार गुलाबजाम जसा खरोखर.
   
केव्हातरी गुलाबजाम फुलत नाही बरा,
तेव्हा मुद्दाम घ्यावा त्यातला गोडवा जरा.

यंत्रावरचे बटण, बटणावर सारे खेळ,
सरतो काटा झटपट, निसटून जाते वेळ.
एखाद्या संध्याकाळी खावी चौपाटीची भेळ,
फोटोविना करावा तेव्हाच आठवणींचा मेळ.

कधीतरी भेळीमधली मिरची देती कळा,
तेव्हा घ्यावा खट्टा मिठ्ठा बर्फाचा गोळा.

आयुष्याच्या गणिताचे किस्से एक दोन
त्यात थोडे त्रिकोण, तर काही काटकोन.