जगा देती है नयी उम्मीद
किसी बात पर नयी सी जिद्द
छिपी इच्छा पे कोई व्रत
जिससे हिल जाए कोई पर्वत
नए संकल्प नया साल
रंग लाता है कोई कमाल
काँच के गिलास में निम्बू पानी
बड़ी ज़ालिम चीज़ है जानी
थोड़ी शर्म और कुछ कुछ मुस्कान
कभी मीठी, तिर्छी, तेज़ ज़बान
अगली गली के उस नुक्कड़
कच्ची सुपारी, बनारसी पान
अगर तुम्हारे पास पड़ा हो,
तो लौटा दो, मेरा कुछ समान
किताबो में सूखे फूल
बीते वक्त की कोई भूल
थोड़ी अठन्नी बाकी चवन्नी
और मिले मिलाये उसूल
नया लिबास, नवेले भेस
हल्की-सी पत्थर की ठेस
कही आगरे का ताज महल
और इण्डिया गेट की पहल
कही सिफारिश कही खुशामद
थोड़ा जहन्नुम, जरा सी जन्नत
जो यही कही था, आज नहीं
बड़ी बेरहम सी हरकत
ये जो है ज़िन्दगी
और यही जीने की आदत |
No comments:
Post a Comment